देश ही नहीं, विदेशों में भी बिहारियों का कद्र बढ़ा – डॉ अरविन्द वर्मा, चेयरमैन

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देश ही नहीं, विदेशों में भी बिहारियों का कद्र बढ़ा – डॉ अरविन्द वर्मा, चेयरमैन

बिहारी पॉवर ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ अरविन्द वर्मा ने बिहार दिवस पर दी बधाई

ANA/S.K.Verma

खगड़िया। अब, जमाना लद गया, जब देश के विभिन्न राज्यों में बिहारी को हेय दृष्टि से देखा जाता था। आज, समय के साथ साथ युग भी बदल गया। बिहारियों की प्रायः हर क्षेत्रों में तूती माने जाने लगी है । अब, देश ही नहीं विदेशों में भी बिहारियों का विशेष कद्र बढ़ा है। उक्त बातें, बिहारी पॉवर ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ अरविन्द वर्मा ने बिहार दिवस के अवसर पर मीडिया से कही। डॉ वर्मान ने बिहार दिवस पर वैसे तमाम बिहारियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई दिया जो वर्तमानमें देशके विभिन्न हिस्सों में रह कर सरकारी या गैर सरकारी कार्यों का संपादन कर देश की सेवा कर रहे हैं। डॉ वर्मा ने देश के तमाम बिहारियों से अपील करते हुए कहा कि अपने अपने पॉवर को समझें और बिहार की गरिमा बनाए रखें, ताकि हम सब मिलकर गर्व से कहें कि हम बिहारी हैं। आगे उन्होंने कहा हर साल 22 मार्च के दिन को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1912 में अंग्रेजों द्वारा बंगाल प्रेसीडेंसी से राज्य को अलग करने के बाद से ये दिवस मनाया जाता है। हर साल बिहार सरकार आज के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित करती है, जो राज्य और केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाली सभी कंपनियों, कार्यालयों और स्कूलों पर लागू होता है। उन्होंने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर चर्चा करते हुए कहा 22 अक्टूबर, 1764 को बक्सर का युद्ध हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और बंगाल के नवाब, अवध के नवाब, और मुगल राजा शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच में लड़ा गया था। लड़ाई बक्सर में लड़ी गई थी और ईस्ट इंडिया कंपनी को इसमें बड़ी जीत हासिल हुई। बंगाल के मुगलों और नवाबों की हार के कारण बंगाल के मुगलों और नवाबों ने प्रदेशों पर नियंत्रण खो दिया और दीवानी के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी को राजस्व के संग्रह और प्रबंधन का अधिकार मिल गया। उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का वर्तमान इलाका शामिल था। उन्होंने यह भी कहा 1911 में, किंग जॉर्ज पंचम का दिल्ली में राज्याभिषेक किया गया और ब्रिटिश भारत की राजधानी दिल्ली को बना दिया गया। 21 मार्च, 1912 को, थॉमस गिब्सन कारमाइकल ने बंगाल के नए गवर्नर का पद संभाला और घोषणा की कि अगले दिन, 22 मार्च से बंगाल प्रेसीडेंसी को बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम के चार सुभाषों में विभाजित किया जाएगा। इसलिए ही 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। डॉ वर्मा ने बिहार दिवस पर साहित्यकारों, पत्रकारों, समाज सेवियों, लेखकों, कवियों, राजनीतिक दल के नेताओं, किसानों, व्यापारियों, उद्योगपतियों, शिक्षकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, मजदूरों, महिलाओं, वृद्धों, बच्चों तथा युवा वर्गों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई भी दी।

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