जलवायु परिवर्तन से पानी की उपलब्धता पर असर – अभिलाषा

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जलवायु परिवर्तन से पानी की उपलब्धता पर असर – अभिलाषा

जल जीवन हरियाली दिवस पर राज्य स्तरीय परिचर्चा

ANA/Indu Prabha

खगड़िया। “जल जीवन हरियाली दिवस” के अवसर पर लघु जल संसाधन विभाग, बिहार द्वारा “सार्वजनिक जल संचयन संरचनाओं यथा- तालाबों, पोखरों, आहरों, पईनों का जीर्णोद्धार” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया , जिसमें संबंधित विभागों सहित सभी जिलाधिकारियों, उप विकास आयुक्तों एवं जिला शिक्षा पदाधिकारियों ने वर्चुअल रूप में भाग लिया। परिचर्चा में लघु जल संसाधन विभाग के साथ ग्रामीण विकास विभाग, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, पंचायती राज विभाग, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, जल संसाधन विभाग, कृषि विभाग, शिक्षा विभाग, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग एवं पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के वरीय पदाधिकारियों ने भाग लिया। इन विभागों के वक्ताओं ने वर्षाजल संचयन की आवश्यकता पर बल देते हुए सार्वजनिक जल संचयन संरचनाओं के महत्व तथा इसके जीर्णोद्धार विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने अवगत कराया कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए सरकार द्वारा काफी योजनाएं बनाई जा रही हैं। इस दिशा में बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जल जीवन हरियाली की महत्वाकांक्षी एवं दूरगामी योजना तैयार कराई गई है। हम पानी का निर्माण नहीं कर सकते केवल इसका कुशलतापूर्वक उपयोग करके पानी की कमी से निपटने में सक्षम हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से पानी की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है और पानी सभी जीव जंतुओं के साथ हरियाली के लिए भी आवश्यक है। हरियाली अर्थात पेड़ पौधों के होने पर ही धरती पर जीवन संभव है। वक्ताओं ने कहा कि आहर, पईन, तालाब, कांवर,झील, चंवर का क्षेत्र सिमटता जा रहा है। भूगर्भ जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है ऐसी स्थिति में पारंपरिक जल स्रोतों का सूखना मानव जाति के लिए बड़ा खतरा सिद्ध हो सकता है। पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता सुनिश्चित कराने, हरित आच्छादन को बढ़ावा देने, मानवीय गतिविधियों एवं बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने, जल को प्रदूषण मुक्त रखने, सभी के लिए पर्याप्त जल को सुनिश्चित रखने एवं भूगर्भ जल को संतुलित बनाए रखने की एक बड़ी चुनौती हमारे सामने खड़ी है। इसके लिए सार्वजनिक जल संचयन संरचनाओं के पुनरुद्धार, सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार, चेक डैम के माध्यम से जल संचयन, अधिशेष नदी जल क्षेत्र से कमी वाले क्षेत्र में जल को ले जाया जाना समय की मांग है। इसी को लेकर गंगाजल उद्वह योजना के अंतर्गत मानसून के समय में गंगा नदी के अधिशेष जल को पाइप लाइन के जरिए राजगीर नवादा गया एवं बोधगया शहरों तक पहुंचाने की योजना के प्रथम चरण का 65% काम पूर्ण हो चुका है। हाथीदह से जल का उठाव करेंगे और इसको संचित कर साल भर इन 4 शहरों में जलापूर्ति कर पाएंगे। 150 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। वहीं, वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि जल है हरियाली है, तभी जीवन है। तालाबों की सफाई कर उसको मूल आकार में ले आना है। लवणीकरण को रोकना भी जरूरी है। मानव के पेयजल के साथ मवेशियों को पीने का पानी उपलब्ध कराने और फसलों के लिए पर्याप्त पानी सुनिश्चित कराने के लिए सार्वजनिक जल संचयन संरचनाओं का पुनरुद्धार आवश्यक है। विदित हो कि प्रत्येक माह के प्रथम मंगलवार को जल जीवन हरियाली दिवस आयोजित किया जाता है और इस बार लघु जल संसाधन विभाग को इसके आयोजन की जिम्मेदारी मिली थी। परिचर्चा के समापन के बाद उप विकास आयुक्त अभिलाषा शर्मा ने जिले में जल जीवन हरियाली योजना अंतर्गत चल रही योजनाओं के शीघ्र पूर्ण कराने का निर्देश संबंधित पदाधिकारियों को दिया। साथ ही एमआईएस डैशबोर्ड पर इनकी इंट्री कराने का भी निर्देश दिया।

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