डाकघर से जुड़ें और निरंतर सेवाएं लेते रहें – डॉ अरविन्द वर्मा, चेयरमैन

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डाकघर से जुड़ें और निरंतर सेवाएं लेते रहें – डॉ अरविन्द वर्मा, चेयरमैन

डाक विभाग की 167 वीं जयंती पर पोस्टल सोसाइटी ऑफ इंडिया के चैयरमैन की अपील

ANA/S.K.Verma

खगड़िया। भारतीय डाक सेवा 1.55 लाख से भी अधिक डाकघरों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी डाक प्रणाली है। भारतीय डाक सेवा की स्थापना यूं तो 166 साल पहले एक अप्रैल 1854 को हुई थी लेकिन सही मायनों में इसकी स्थापना एक अक्तूबर 1854 को मानी जाती है। तब तत्कालीन भारतीय वायसराय लॉर्ड डलहौजी ने इस सेवा का केंद्रीकरण किया था। उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत आने वाले 701 डाकघरों को मिलाकर भारतीय डाक विभाग की स्थापना हुई थी। उक्त बातें, डाक विभाव की 167 वीं जयंती पर पोस्टल सोसाइटी ऑफ इंडिया के चैयरमैन डॉ अरविन्द वर्मा ने मीडिया से कही। आगे उन्होंने कहा हालांकि इससे पहले लॉर्ड क्लाइव ने अपने स्तर पर 1766 में भारत में डाक व्यवस्था शुरू की थी। इसके बाद बंगाल के गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कोलकाता में एक प्रधान डाकघर बनाया था। अंग्रेजों ने इस सेवा की शुरुआत अपने सामरिक और व्यापारिक हितों के लिए की थी। मगर यह देश की आजादी के बाद भारतीयों के लिए सुख-दुख की साथी बन गई। 1854 में शुरू हुई थी रेल डाक सेवा अंग्रेजी हुकूमत ने 1854 में ही भारत में रेल डाक सेवा की शुरुआत की थी। देश में डाक और तार (टेलीग्राम) की शुरुआत दो अलग-अलग विभाग के तौर पर हुई थी। सामानांतर रूप से ही इनका विकास हुआ। 1914 में हुए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इन दोनों विभागों का विलय कर दिया गया। डॉ वर्मा ने कहा 2016 में खत्म हुई तार सेवा इसके बाद भारत में 1877 में वीपीपी और पार्सल सेवा शुरू हुई। वहीं 1879 में पोस्टकार्ड की शुरुआत हुई। टेलिफोन और मोबाइल के आने से तार सेवा की जरूरत खत्म हो गई। डॉ वर्मा ने कहा आज 21 वीं सदी में भी डाकघर की महत्ता बताई और कहा आज हमलोग डिजिटल इण्डिया की ओर बढ़ रहे हैं। डाकघर के उपभोक्ताओं को भी नए जमाने के अनुरुप डिजिटल सेवाएं दी जा रही है। डॉ वर्मा ने देश की आवाम से आग्रह करते हुए अपील किया कि डाकघरों की गरिमा बनाए रखने के लिए निरन्तर सेवाएं लेते रहें और डाकघर से जुड़े रहें।

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