बरुआ ग्राम में हुआ फसल अवशेष प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला सह प्रायोगिक प्रशिक्षण, डीडीसी ने की उद्घाटन

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बरुआ ग्राम में हुआ फसल अवशेष प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला सह प्रायोगिक प्रशिक्षण, डीडीसी ने की उद्घाटन

वरीय वैज्ञानिक डॉ अनिता कुमारी ने किसानों को दी विस्तृत जानकारी, किसान हुए लाभान्वित

ANA/Indu Prabha

खगड़िया। उप विकास आयुक्त अभिलाषा शर्मा ने कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया द्वारा चलाए जा रहे जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम अंतर्गत फसल अवशेष प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला सह प्रायोगिक प्रशिक्षण का उद्घाटन अलौली प्रखंड के रौन पंचायत के बरुआ ग्राम में किया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उप विकास आयुक्त ने एकत्र किसानों एवं ग्रामीणों को संबोधित करते हुए बताया कि विभिन्न फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा गुहाई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, तना तथा जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है। विगत एक दशक में खेती में मशीनों का प्रयोग काफी बढ़ा है। साथ ही खेतिहर मजदूरों की कमी की वजह से मशीनों का प्रयोग एक आवश्यकता भी बन गई है। अवशेष को जोताई कर मिट्टी में मिलाने से एवं कचरे से कम्पोस्ट बनाये जाने से पर्यावरण अनुकूल सतत कृषि को बढ़ावा दिया जा सकता है। अलग से अवशेष प्रबंधन में मजदूरों, समय के साथ धन की भी आवश्यकता होती है और दो फसलों के बीच उपयुक्त समय के अभाव की वजह से फसल अवशेष का प्रबंधन आवश्यक हो जाता है। कुछ किसानों का यह मानना कि फसल अवशेष को जला देने से खेत साफ होता है, सही नहीं है, क्योंकि फसल अवशेष प्रबंधन की बजाय इसे जलाने से मिट्टी, वातावरण, मनुष्य और पशुओं के स्वास्थ्य के ऊपर कितना घातक प्रभाव पड़ता है, इसका अंदाजा लगाए जाना बहुत मुश्किल नहीं है। फसलों के जलाने से मिट्टी की उर्वरता तो क्षीण होती ही है, साथ ही स्वास्थ्य के ऊपर भी कुप्रभाव पड़ता है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ अनिता कुमारी ने अपने संबोधन में फसलों के अवशेषों को खेतों में जलाने पर भूमि की उर्वरा शक्ति के ह्रास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इससे 100% नेत्रजन, 25% फास्फोरस, 20% पोटाश एवं 60% सल्फर का नुकसान होता है। भूमि की संरचना के क्षति होने से जब पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में स्थानांतरण नहीं हो पाता है तथा अत्यधिक जल का निकास ना हो पाने से भूमि में कार्बनिक पदार्थों का ह्रास होता है एवं फसल अवशेषों में मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाती है। जमीन के ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट व केंचुआ आदि को नुकसान होता है। वैज्ञानिक (पौधा संरक्षण) एनके सिंह ने अपने संबोधन में धान के पुआल, पराल के पशु चारे के रूप में प्रयोग, धान के पुआल का यूरिया, कैल्शियम हाइड्रोक्साइड से उपचार या फिर प्रोटीन द्वारा संवर्धन कर पशुओं के चारे के रूप में उपयोग के बारे में जानकारी दी। पुआल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर वाष्प से उपचारित कर चारा के रुप में प्रयोग में लाया जा सकता है। स्ट्राॅ बेलर द्वारा खेत में पड़े फसल अवशेषों को दबाकर कम जगह में भंडारित कर चारे में उपयोग करना चाहिए। रीपर का प्रयोग कर भूसा बनाना चाहिए। फसल अवशेषों का मशरूम की खेती में सार्थक उपयोग किया जा सकता है। धान के अवशेषों का गैसीकरण कर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है एवं बहुतसारी कंपनियां धान के पुआल से बिजली पैदा कर रही हैं। फसल अवशेषों का प्रभावी प्रयोग जैसे गत्ता बनाना आदि नए-नए वैकल्पिक उपयोगों में किया जा सकता है। फसल अवशेष प्रबंधन पर आयोजित इस कार्यक्रम का सफल संचालन में कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण सारे विद्यार्थियों के साथ-साथ सुनील चौधरी, कृतेश कुमार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस कार्यक्रम में बहुत से कृषकों एवं ग्रामीणों ने भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित की एवं फसल प्रबंधन के बारे में नई तकनीकों से अवगत हुए।

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