आदर्श आचरण से ही बन सकते हैं “अजातशत्रु” – दार्शनिक शंभू

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आदर्श आचरण से ही बन सकते हैं “अजातशत्रु” – दार्शनिक शंभू

ANA/Arvind Verma

खगड़िया। आचरण की भाषा मौन होती है किंतु वह अत्यंत प्रभावी होकर मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को बयां करती है। जिसके जीवन के उपवन में शत्रुता के शूल नहीं बल्कि मित्रता के फूल खिलते हैं वही अजातशत्रु कहलाता है। प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत आचरण उसकी परिवारिक, सामाजिक और व्यवहारिक पृष्ठभूमि का प्रतिबिंब होता है जो उसके हाव भाव,प्रदर्शन और क्रियाकलापों की भाव भंगिमा से परिलक्षित होता है।उसके प्रदर्शन में उसकी सोच,आदत और उसके आचरण की झलक मिलती है। धर्म,जाति और डिग्री के आधार पर मनुष्य का आचरण निर्मित नहीं हो सकता है। ज्ञान सम्मत आचरण और आचरण सहित ज्ञान की जीवन में बहुत आवश्यकता है। आदर्श आचरण ही चरित्र का निर्माण करता है जो जीवन की सर्वोपरि और सर्वोत्तम शक्ति है।व्यक्ति के शांत,संतुलित और समृद्धवान बनने की मूल कुंजी उसका आदर्श आचरण और विनम्र स्वभाव ही है। हमारा चरित्र ही हमारे विचारों और संस्कारों की प्रतिछाया है। अगर वैचारिक धरातल ही गंदा है तो चरित्र के पवित्रता की कल्पना भला कैसे की जा सकती है? मनुष्य के आचरण से ही उसके व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण संभव है।आचरण की भाषा मौन होती है किंतु वह अत्यंत प्रभावी होकर मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को बयां करती है। सर्वहित में स्वहित के भाव को जीने वाला मानव ही उन्नत चरित्र का निर्माण कर पाता है जिसके जीवन के उपवन में शत्रुता के शूल नहीं बल्कि मित्रता के फूल खिलते हैं और वह अजातशत्रु कहलाता है। किसी भी युग में मूर्धन्य विद्वान, मनीषी, द्रष्टा, पथ प्रदर्शक, साहित्यकार, दार्शनिक और चिंतक का जन्म तो हो सकता है किंतु अजातशत्रु की उत्पत्ति दुर्लभ है। ऐसा व्यक्ति आलोचना,निंदा,तिरस्कार और उपेक्षा से परे होकर हमेशा मानवतावादी सोच के लिए प्रयत्नशील दिखाई पड़ता है। स्वार्थ,छल,कपट,छद्म,ईर्ष्या,द्वेष,राग,विराग,सुख दुख जैसे भावों से निर्विकार रहने वाला मनुष्य दूसरे को पराजित होने में खुशी का अनुभव नहीं करता है बल्कि वह अपने इष्ट मित्रों,सगे संबंधियों की जीत में ही प्रसन्नता का अनुभव करता है और अपने सरल स्वभाव और नाशवान शरीर से परोपकारी प्रवृति के माध्यम से जीवन की सफलता की सार्थकता को सिद्ध करता है।अब भला ऐसे विचारवान मनुष्य का कौन शत्रु होगा? ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करने में उसका विरोधी भी नहीं चूकता है। विरोधी भी ऐसे व्यक्ति की आलोचना करने में सकुचाता है। विरोधी भी ऐसे व्यक्ति के भावात्मक और आत्मीय अनुराग के आकांक्षी होते हैं। आज हमारा समाज जिस प्रतिशोध के दौर से गुजर रहा है उस दौर में क्षमा, दया, करुणा और मानवतावादी सोच का बड़ा अभाव दिखाई पड़ता है और इसी अभाव की वजह से मानव स्वयं मानवता का दुश्मन बन गया है। दया,क्षमा,त्याग,करुणा और ममता जैसे दैवीय आभूषण से जिस व्यक्ति के आचरण का श्रृंगार होता है वह स्वतः ही अजातशत्रु की श्रेणी में आ जाता है और घोर आलोचक और विरोधी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उसके समक्ष नतमस्तक दिखते हैं।जुबान से भले ही आलोचक और विरोधी परिस्थितिवश कुछ शाब्दिक बयां कर देते हैं किंतु उनकी अन्तरआत्मा सदैव उन्हें उस व्यक्ति के व्यक्तित्व की सराहना करने से खुद को रोक नहीं पाती है।ऐसे व्यक्ति की कथनी और करनी में समानता होती है जिससे उसका चारित्रिक मूल्य प्रतिकूल परिस्थितियों में भी ऊंचा रहता है।व्यवहार की मृदुता और आचरण की शुचिता से न सिर्फ व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है बल्कि मानसिक शांति भी मिलती है।सद्व्यवहार और सदाचरण से ही मानव जीवन सार्थक होता है और यहीं से मानवता जन्म लेती है।प्रेम, सत्यवादिता, विश्वासपात्रता, हृदय की शुद्धता,विनम्रता और ईश्वर में विश्वास ही ऐसे भाव हैं जिनसे चरित्र सुगठित होता है जो आचरण में परिलक्षित भी होता है। बाहरी आंख को आकर्षण की सुंदरता भले ही सम्मोहित करती है जबकि मन की आंखें आदर्श आचरण से ही तृप्त होती है।सामर्थ्य की साक्षी में सम्बंध जोड़ने वाले महज एक समर्थक ही होते हैं जो किसी खास परिस्थितिवश उन्हें चर्चा परिचर्चा में रखते हैं जबकि आदर्श आचरण के धनी और अनुराग से प्रेरित होने वाले अनुयायी होते हैं जो अनंतकाल तक ऐसे आचरण और विचारधारा को अमर रखते हैं। जहां समर्थक उनकी मौजूदगी में उनका यशोगान करते हैं वहीं अनुयायी उनकी अनुपस्थिति में भी उनके आचरण और विचारधारा को अक्षुण्ण रखते हुए अनंत काल तक अमर बनाए रखते हैं। जहां लोग क्षणिक सुख, पद और प्रतिष्ठा के लिए आदर्श आचरण से अलग थलग रहते हैं,कुछ समय के लिए पद,प्रतिष्ठा और प्रभाव से वशीभूत होकर आत्ममुग्ध रहते हैं वहीं आदर्श आचरण औऱ संवेदनात्मक भाव के धनी व्यक्ति अपने क्षमा, दया, त्याग,करुणा और ममता के भाव के साथ अजातशत्रु बनकर अनंतकाल तक अमर रहते हैं औऱ युगों युगों तक प्रेरक बने रहते हैं और जब तक जीवित रहते हैं तब तक ईश्वरीय आभूषण से दीप्त होते रहते हैं और अजातशत्रु की स्थिति जीवन में तभी बन पाती है जब ऐसे मानव पर परम पिता परमेश्वर की असीम कृपा होती है।

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