हरिकुंज जन्मशती वर्ष पर शब्द यात्रा, भागलपुर ने की ऑनलाइन परिचर्चा

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हरिकुंज जन्मशती वर्ष पर शब्द यात्रा, भागलपुर ने की ऑनलाइन परिचर्चा

कला, साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म के लिए समर्पित थे हरिकुंज -डॉ ओमप्रकाश सामबे

ANA/Vikas Panday

भगलपुर। पूर्वोत्तर भारत के संत-साहित्यकार तथा अंग जनपद के सांस्कृतिक महाप्राण कीर्तिशेष श्री हरिलाल कुंज जी की ‘जन्मशती-वर्ष’ पर ‘शब्दयात्रा भागलपुर’ द्वारा एक सार्थक ‘ऑनलाइन परिचर्चा’ का आयोजन किया गया, जिसमें बिहार अंगिका अकादमी पटना के निवर्त्तमान अध्यक्ष डॉ लखनलाल सिंह ‘आरोही’, विद्वान मनीषी पंडित शम्भूनाथ शास्त्री वेदान्ती, वरिष्ठ पत्रकार कवि डॉ ओमप्रकाश सामबे, बिहार की प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘पलाश’ के कथाकार-कवि संपादक उमाकांत भारती, पत्रकार लघुकथाकार किशोर कुमार अग्रवाल एवं हिंदी अंगिका और मगही के चर्चित कवि राजकुमार ने हरिकुंज जी के विभिन्न आयामों पर विस्तार पूर्वक चर्चा की | परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए विद्वान मनीषी पंडित शम्भूनाथ शास्त्री ‘वेदान्ती’ ने उन्हें पूर्णरूपेण कर्मयोगी बताते हुए कहा – ” महात्मा हरिलाल कुंज जी सचमुच एक युग-पुरुष थे जो युगों-युगों तक स्मरणीय रहेंगे | उन्होंने आध्यात्मिक-आन्दोलन कर लोक संग्रहार्थ श्री मीरा जयन्ती, श्री गौराङ्ग संकीर्तन समिति आदि संस्थानों की स्थापना कर भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित कर देश के मूर्धन्य विद्वानों के प्रवचन से अंग जनपद को आप्यायित किया | गीता के उपदेश को सार्थक कर कर्मयोगी हरिलाल कुंज जी इस युग के अर्जुन थे, जिन्होंने हमें यह शिक्षा दी कि कर्म का कुशल कारीगर बन हम कैसे निज-हित और परहित को साधकर निष्काम कर्मयोगी के रूप में मोक्ष तक को भी प्राप्त कर सकते हैं ! ” डॉ लखनलाल सिंह ‘आरोही’ ने उन्हें याद कर कहा – ” श्री हरिलाल कुंज के नाम से मैं पूर्व परिचित था, परंतु साक्षात्कार अचानक हुआ । मेरे अनन्य मित्र हिंदी के शिखर आलोचक डॉ बिजेंद्र नारायण सिंह और मैं, साथ फोटो खिचवाने की इच्छा से उनकी ‘चित्रशाला’ में गया, जहाँ उन्होंने अत्यंत हार्दिकता से हमारा स्वागत करते हुए प्रसन्नता जाहिर की | हरिकुंज जी ने खुद फोटो खींचा, उसके बाद कुछ देर आपस में भागलपुर की साहित्यिक गतिविधि की चर्चा हुई। हरिलाल कुंज जी के साथ बिताए वे आत्मीय-क्षण आज भी मुझे स्निग्ध करते रहते हैं जब मेरी नजर उक्त फोटो पर पड़ती है !” डॉ ओमप्रकाश सामबे ने उन्हें भक्तिपूर्ण गायन के अद्भुत उदाहरण बताते हुए कहा – ” मैं 1977 में ओशो से संन्यास लेकर, जब शहर लौटा, तो हरिकुंज जी से उनकी ‘चित्रशाला’ में पहलीबार भेंट हुई थी | उनकी रुचि धर्म और आध्यात्म में थी, सो उन्होंने अनेक सवाल ओशो और अध्यात्म के संबंध में किया, मैंने उत्तर दिया | फिर चर्चा और मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हो गया | वे घर-घर कीर्त्तन में ले जाने लगे | श्री मीरा जयंती महोत्सव में शामिल किया | हारमोनियम बजाकर गाते-गाते उनकी आँखों से झर-झर आंसू बहने लगते थे | हरिकुंज जी पूर्ण रूप से कला, साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म के लिए समर्पित थे ! ” हिंदी पत्रिका ‘पलाश’ के संपादक उमाकांत भारती ने कहा – ” हरिलाला कुंज जी की कुछेक साहित्यिक रचनाओं का मैंने अवलोकन किया है | भाषा शैली संप्रेषण और रोचकता में इनकी कहानियाँ आज के कहानी दौर में अग्रणी और प्रासंगिक हैं ! जन्मशती-वर्षारंभ पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ! शत-शत नमन ! ” राँची के वरिष्ठ पत्रकार किशोर कुमार अग्रवाल ने उन्हें स्मरण कर कहा – ” चाचाश्री हरिकुंज जी मेरे ताऊजी कृष्णलाल अग्रवाल तथा बाबूलाल चूरड़ीवाला तीनों गहरे मित्र थे | उनकी नयाबजार के पूरे अग्रवाल समाज में अच्छी प्रतिष्ठा थी l भागलपुर में श्री गोरांग संकीर्तन समिति और श्री मीरा जयंती महोत्सव उन्हीं की देन थी । नाटकों में उनकी विशेष रुचि थी उन्होंने नाटकों का लेखन मंचन एवं अभिनय तीनों किया । एकबार ‘भगवान पुस्तकालय’ के मंच पर उनके निर्देशन में नाटक मंचित हुआ था जिसमें सभी कलाकार अग्रवाल समाज के ही लोग थे ! ” कवि राजकुमार ने कहा – ” शुभाशीष जिनका मिला, मिला पुत्रवत प्यार, नत है उनके सामने उनका राजकुमार। हरिलाल कुंज जी की चर्चा अनंत काल तक होती रहेगी, ऐसे समदर्शी व्यक्तित्व को कभी भुलाया नहीं जा सकता | उनको सादर नमन एवं संतान-धर्म को निर्वहन करने वाले सच्चे साहित्यधर्मी भाई पारस कुंज को दिल से साहित्यिक साधुवाद ! “

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