आइपीएस अरविन्द पांडेय जब विंध्याचल में पंडा का करते थे कार्य …

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अरविन्द पांडेय, आईपीएस

आइपीएस अरविन्द पांडेय जब विंध्याचल में पंडा का करते थे कार्य …

मंदिर,अत्यंत उपयोगी ! देता है रोजगार – अरविन्द पांडेय, आईपीएस

ANA/Arvind Verma

पटना। मंदिरों के आसपास की दुकानों में *फूल, मिठाई, चुनरी, नारियल आदि की 95% दुकानें पिछड़े और दलित वर्ग की होती हैं। वैष्णो देवी में ८०% दुकानें मुस्लिम समुदाय की हैं जिन्हें रोज़गार मिला हुआ है। मंदिर दर्शनार्थियों से परिवहन उद्योग, होटल उद्योग में लाखों लोग रोज़गार पा रहे हैं। विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद अब तक 10 करोड़ लोग बनारस में न्यूनतम एक रात बिताते हुए भगवान् विश्वनाथ का दर्शन कर चुके हैं। उक्त बातें, विंध्याचल निवासी बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी अरविन्द पांडेय ने मीडिया से एक भेंट में कही। आगे उन्होंने कहा विन्ध्याचल में जो पूजा सामग्री की दुकानें हैं उनमें 80 % पिछड़े और दलित वर्ग की हैं। पटना के हनुमान मंदिर के आसपास की दुकानों की भी यही स्थिति है। मंदिरों से संबंधित मुख्य आय-स्रोत दुकानें ही होती है। आपबीती सुनाते हुए अरविन्द पांडेय ने कहा मैं जब छात्र जीवन में विंध्याचल में पंडा के रूप में कार्य करता था तो यात्री ५०० रुपये की पूजन सामग्री लेते थे जिसमे दुकानदार को २०० रुपये का लाभ होता था और मुझे दक्षिणा स्वरूप २१ रुपये देते थे। मंदिर सदा से “सामाजिक और आर्थिक न्याय” के प्रमुख केंद्र रहे हैं। अरविन्द पांडेय ने कहा बिहार में ३० साल से एक उद्योग नहीं लगा तो रोज़गार के लिए कुछ साधन चाहिए न। वैसे,समग्र रूप में देखिए। परिवहन, होटल , दुकानें, उनको आपूर्ति करने वाली फैक्टियाँ चलती हैं। पूजा का नारियल केरल और उड़ीसा से आता है। चुनरी बनाने की गुजरात महाराष्ट्र से। चुनरी की हज़ारों फ़ैक्ट्रियाँ चलती है। तटस्थ सोचना होगा। पहले विन्ध्याचल की दुकानों के लिए हमलोग लाल गोपाल गंज चुनरी लाकर वहाँ के खुदरा दुकानदारों को बेचते थे। प्रयागराज के आगे ये जगह है। उस कस्बे में मुस्लिम समुदाय के लोग ही चुनरी बनाते हैं। सैकड़ों फैक्टियाँ रंगने और बनाने की। उस क्षेत्र के सारे मंदिरों को आपूर्ति वहीं से होती है। प्रिंटेड चुनरी बाहर से आती है। अरविन्द पांडेय ने स्पष्ट किया कि यही कारण है मंदिर विरोधी चिल्लाते रहते हैं और जनसामान्य मंदिर के पक्ष में रहता है।

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