दूरस्थ शिक्षा डिग्रीधारियों के साथ राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार कर रही भेदभाव

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दूरस्थ शिक्षा डिग्रीधारियों के साथ राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार कर रही भेदभाव

भारत सरकार व यू जी सी के नियम कानूनों की उड़ रही धज्जियां

ANA/Indu Prabha

खगड़िया। भारत सरकार द्वारा बनाई गई नियम एवं कानूनों की बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के नियंत्रण में बनी राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार पटना के अधिकारियों द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही है, जिसका सीधा प्रभाव दूरस्थ शिक्षा से प्राप्त डिग्री धारियों पर पड़ रहा है। हाल ही में राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार द्वारा संविदा पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन (विज्ञापन संख्या- 07/2020) निकाली गई है, जिसमें हॉस्पिटल मैनेजर(94), डिस्ट्रिक्ट प्लांनिंग कोऑर्डिनेटर (15) तथा सीनियर डी ओ टी एस प्लस टी वी- एच आई वी सुपरवाइजर(13) पदों के लिए रिक्त है, जिसमें एसेंशियल क्वालिफिकेशन में स्पष्ट लिखा गया है कि योग्यताधारी फूल टाइम वाला हो, का जिक्र किया गया है। इससे स्पष्ट है कि समिति दूरस्थ शिक्षा से प्राप्त डिग्री धारी इन पदों के लिए आवेदन करने के लायक नहीं हैं। आखिर, बिहार स्वास्थ्य समिति, बिहार के संबंधित अधिकारी (विज्ञापन प्रकाशित करने वाले) दूरस्थ शिक्षा से प्राप्त डिग्री धारियों के साथ क्रूर मजाक क्यों कर रहे हैं ? जब की इसी बिहार में नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुल सचिव द्वारा निकाली गई विज्ञापन(विज्ञापन संख्या- 01/2020) में विभिन्न पदों के लिए न्यूनतम योग्यता में सिर्फ डिग्री अंकित है, न की नियमित। उक्त जानकारी देते हुए बिहारी पॉवर ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ अरविन्द वर्मा ने मीडिया से कहा कि एक ओर, बिहार में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बिहारी शिक्षित(दूरस्थ शिक्षा) युवा बेरोजगारों के साथ बिल्कुल अन्याय कर रहे हैं तो दूसरी ओर भारत सरकार और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यू जी सी) को ठेंगा दिखा रहे हैं। डॉ वर्मा ने भारत सरकार से मांग किया है कि बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा ऐसे विवादास्पद विज्ञापन को तुरंत रद्द कर फ्रेश संशोधित विज्ञापन प्रकाशित कराए जाएं और भारत सरकार के नियमों को धात्ता बताने वाले संबंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो सके और दूरस्थ शिक्षा से प्राप्त डिग्री धारियों के बीच हीन भावना उत्पन्न नहीं हो सके। आगे डॉ वर्मा ने कहा देश में दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से हासिल किए गए डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स को भी नियमित कोर्स के बराबर मान्यता विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा दी गई है।यूजीसी के अनुसार भारत सरकार ने मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका की कल्पना की है। मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा व्यवस्था शिक्षा की गुणवत्ता में कमी लाए बिना उच्च शिक्षा के प्रसार में मदद कर रही है। ऐसे में नियुक्ति, पदोन्नति या उच्च शिक्षा में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा से प्राप्त डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट को मान्यता न देना या कम मान्यता देना इस माध्यम के उद्देश्यों को हरा देगा। डॉ वर्मा ने आगे कहा यूजीसी या डीईसी से मान्यता प्राप्त किसी भी डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट को नियमित कोर्स के बराबर मान्यता दी गई है, जिसे यूजीसी द्वारा इसे कानूनी रूप से वैध बनाने के लिए यूजीसी (मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा) नियमन 2017 को अधिसूचित किया जा चुका है। डॉ वर्मा ने कहा कितने आश्चर्य की बात है कि दूरस्थ शिक्षा से प्राप्त डिग्री धारी आई ए एस/आई पी एस जैसे सर्वोच्च पद के लिए यू पी एस सी की परीक्षा में शामिल होकर आई ए एस और आई पी एस बन सकते हैं। मगर, यही दूरस्थ डिग्री धारी राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के किसी पद के लिए आवेदन करने योग्य नहीं हैं। ऐसा करना बिहारियों के साथ भेदभाव करने जैसा है, जिसके सुधार की सख्त आवश्यकता है।

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