सभी के हक के लिए अहिंसक अर्थव्यवस्था ही कारगर – प्रसून लतांत

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सभी के हक के लिए अहिंसक अर्थव्यवस्था ही कारगर – प्रसून लतांत

ANA/Prem Kumar

नई दिल्ली। आज दुनिया भर में बढ़ते शहरीकरण, केंद्रीकरण, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण विनाश, मानवाधिकार उल्लंघन, युद्ध और आतंकवाद के खतरों सहित हाल ही में लॉकडाउन के दौरान शहरों से गांवों की ओर लाखों करोड़ों लोगों का पलायन आदि से वर्तमान अर्थव्यवस्था के दुष्परिणाम सामने दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे में अब अहिंसक अर्थव्यवस्था के संचालन की जरूरत महसूस की जाने लगी है । उक्त बातें, गांधी विचारक व वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने मीडिया से कही। आगे उन्होंने कहा अहिंसक अर्थव्यवस्था का मतलब महात्मा गांधी के अर्थ संबंधी विचारों में मौजूद हैं।
महात्मा गांधी ने अहिंसक अर्थव्यवस्था के लिए देश और दुनिया के लोगों से संवाद अपने समाचार पत्रों के जरिए आजादी के पूर्व से ही शुरू कर दिया था। उन्होंने देश के सामने रचनात्मक कार्यक्रम की सूची पेश की,जिसमें अन्य विषयों के साथ आर्थिक समानता के कार्य को भी प्राथमिकता के साथ शामिल किया था। अर्थ समानता अध्याय में महात्मा गांधी का कहना है कि रचनात्मक काम में शामिल अर्थ समानता का कार्य पूर्ण स्वराज्य की मुख्य चाबी है। आर्थिक समानता के लिए काम करने का मतलब है पूंजी और मजदूरों के बीच के झगड़ों को हमेशा के लिए मिटा देना। इसका अर्थ यह होता है कि एक तरफ जिन मुट्ठी भर पैसे वाले लोगों के हाथ में राष्ट्र की संपत्ति का बड़ा भाग इकट्ठा हो गया है उनकी संपत्ति को कम करना और दूसरी ओर से जो करोड़ों लोग आज आधे पेट खाते और नंगे रहते हैं उनकी संपत्ति में वृद्धि करना। जब तक मुट्ठी भर धनवान और करोड़ों भूखे रहने वालों के बीच बेइंतहा अंतर बना रहेगा तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलने वाली राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था कायम नहीं हो सकती। गांधी जी ने आजादी पूर्व में कहा था कि देश के बड़े से बड़े धनवानों के हाथ में हुकूमत का जितना हिस्सा रहेगा उतना ही गरीबों के हाथ में भी होगा और तब नई दिल्ली के महलों और उनकी बगल में बसी हुई गरीब मजदूर बस्तियों के टूटे-फूटे झोपड़ों के बीच जो दर्दनाक फर्क नजर आता है वह 1 दिन को भी नहीं दिखेगा। अगर धनवान लोग अपने धन को और उसके कारण मिलने वाली सत्ता को खुद राजी खुशी से छोड़कर और सब के कल्याण के लिए सबके साथ मिलकर बरतने को तैयार ना होंगे तो यह समझ लें कि हमारे देश में हिंसक और खूंखार क्रांति हुए बिना नहीं रहेगी। गांधी जी की भविष्यवाणी अब साक्षात दिखाई पड़ने लगी है। महात्मा गांधी के विचारों के आलोक में मौजूदा अर्थव्यवस्था के दुष्परिणाम को समझने और अहिंसक अर्थव्यवस्था की सूरत तलाशने के मकसद से गो रूर्बन की पहल बहुत प्रासंगिक है। उनकी यह पहल गांधी जी के उन विचारों को समयानुरूप धरातल पर लाने की आकांक्षा से लबरेज है। गो रुर्बन की यात्राएं और उनकी अन्य गतिविधियां हमें उन बातों की तह में ले जा सकती हैं कि आखिर गांधी जी ने रचनात्मक कार्यक्रम में आर्थिक समानता को क्यों स्थान दिया। इसके लिए उन्होंने देशवासियों से कहा था कि इस कार्य के लिए आजादी मिलने का इंतजार नहीं करें। वे अपना प्रयास आज से शुरू करें। महात्मा गांधी की राय में न केवल भारत की बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि किसी को भी अन्य और वस्त्र की तकलीफ ना उठानी पड़े। आमतौर पर माना जाता है कि निरंतर आर्थिक विकास और वृद्धि से ही दुनिया से गरीबी उन्मूलन हो सकेगा लेकिन गांधीजी ने यह जान लिया था कि इस तरह के आर्थिक विकास के तहत गरीबी और विषमता के बढ़ने की संभावना बनी रहेगी। इस तरह गांधी जी गरीब आदमी को आर्थिक चिंतन के केंद्र बिंदु में ले आए। अन्तिम व्यक्ति का कल्याण उनका ध्येय बन गया। इसके लिए उन्होंने एक ताबीज भी दी है जिसमे उन्होंने लोगों का ध्यान अंतिम व्यक्ति की तरफ खींचा है। गांधी जी के विचारों के अनुरूप अहिंसक अर्थव्यवस्था में यह बात है कि अगर आदिवासियों, मूल आदिवासियों को सम्मानजनक जीवन देना है तो उनके संसाधन जल,जंगलऔर जमीन को बचाना होगा और उन्हें वहीं पर अपनी जरूरत की चीजों के लिए आत्मनिर्भर बनाना होगा। गांधी जी का अहिंसक अर्थशास्त्र का मकसद आजाद भारत के हर व्यक्ति के लिए आर्थिक स्वायत्त ता और सर्वांगीण विकास का अवसर देने के सिद्धांत पर आधारित था। गांधी जी भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और उसके प्राकृतिक स्वरूप को उन्नत करने के हिमायती थे। उनकी अहिंसक अर्थ व्यवस्था को गांधीवादी अर्थशास्त्री कुमारप्पा ने और स्पष्ट किया है कि अहिंसक अथॆव्यस्था नैतिकता और अध्यात्म शक्ति पर आधारित है। अहिंसक अर्थव्यवस्था को समानता वादी के साथ सेवा अर्थव्यवस्था की भावना और उद्यमी अर्थव्यवस्था के माध्यम से निर्देशित किया जाना चाहिए। गांधी जी के अहिंसकअर्थव्यवस्था संबंधी विचारों पर रस्किन और टालस्टाय का प्रभाव है। वैसे यह सारी दुनिया हिंसा में लिप्त है। अहिंसक और न्यायपूर्ण दुनिया बनाने के लिए गांधी जी ने अहिंसा का सूत्र दिया था। गांधी जी ने कहा था कि संसार में हिंसा की बहुत कहानियां हैं। अहिंसा एक नया शास्त्र है । विचारकों को इसका विकास करना चाहिए। मौजूदा अर्थ व्यवस्था हिंसा और शोषण पर आधारित है। गांधी कहते थे कि व्यक्ति की भलाई सबकी भलाई में ही निहित है। वकील का और नाई का कार्य का मूल्य बराबर है। वे यह भी कहते थे कि बिना श्रम खाए चोर कहाए। आज की अर्थव्यवस्था ये सब बातें नहीं है नतीजा यही है कि पूरा विश्व विभिन्न समस्याओं से त्रस्त है। गांधी जी ने यह भी कहा है कि अगर गरीबी और अमीरी की खाई कम नहीं की गई अहिंसा भी नहीं बचेगी ।

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