किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे वामदल, कांग्रेस और राजद का भी मिला समर्थन, किसानों पर ज़ुल्म के खिलाफ पुतला दहन

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किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे वामदल, कांग्रेस और राजद का भी मिला समर्थन, किसानों पर ज़ुल्म के खिलाफ पुतला दहन

तीनों काले कानून, किसानों को कारपोरेट्स का गुलाम बनाने वाली नीति – वाम दल

ANA/S.K.Verna

खगड़िया। देश में किसानों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का जोर अब बिहार में भी पकड़ने लगा है। किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे वामदल, कांग्रेस और राजद का भी मिला समर्थन, किसानों पर ज़ुल्म के खिलाफ पुतला दहनवामपंथी पार्टियों के राज्यव्यापी आवाहन पर केंद्र सरकार की किसान विरोधी रवैये के खिलाफ खगड़िया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंका गया। वामदलों के इस प्रतिरोध कार्यक्रम को कांग्रेस पार्टी और राजद का भी समर्थन मिला। सभी दलों के नेता व कार्यकर्ताओं ने सीपीआई कार्यालय योगीद्र भवन से महात्मा गांधी मार्ग होते हुए राजेंद्र चौक तक प्रतिरोध मार्च निकाला। इस दौरान केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीति के खिलाफ लोग जमकर नारेबाजी करते दिखे। राजेंद्र चौक पर ही स्वराज इंडिया के बरिष्ट नेता विजय कुमार सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के पुतला में आग फूंका। माकपा के जिला मंत्री संजय कुमार की अध्यक्षता और वरिष्ठ सीपीआई नेता प्रभा शंकर सिंह एवं विजय कुमार सिंह की संचालन में प्रतिरोध सभा आयोजित की गई। सभा को संबोधित करते हुए नेताओं ने कहा कि आज पूरे देश में एक ही मुद्दा है। पिछले 7 दिनों से दिल्ली की सीमा को किसानों ने चारों तरफ से घेर रखा है। ऐसा लगता है कि देश की मोदी सरकार किसानों से जंग लड़ रही है। किसानों का यह गुस्सा अचानक नहीं फूटा। जिस प्रकार से राज्यसभा में संविधान व लोकतंत्र की हत्या करके इन तीनों कानूनों को पारित करवाया गया, उसने किसानों के अंदर संचित गुस्से का विस्फोट कर दिया है। आज इन कानूनों के खिलाफ पूरे देश के किसान आंदोलित हैं। तीनों काले कानूनों पर किसानों का पक्ष पूरी तरह सही है। उनका कहना पूरी तरह जायज है कि ये काूनन खेती व किसानी को चौपट कर कारपोरेटों का गुलाम बनाने वाली नीतियां हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आलू-प्याज जैसे आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी नहीं हो सकती थी, लेकिन अब उसका दरवाजा खोल दिया गया है। अब पूंजीपति सस्ते दर पर किसानों का सामान खरीदेंगे और और फिर महंगा बेचेंगे।उन्हें मुनाफा कमाने की छूट मिल गई है। किसानों की मांग थी कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गांरटी करे। खेती के लागत का डेढ़ गुनी कीमत तय करने की सिफारिश स्वामीनाथन आयोग ने की थी। लेकिन सरकार उसे लागू करने के बजाय ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह किसानों के साथ बड़ा धोखा है। सरकार ने मंडियों को तोड़ दिया। मंडियों के टूटने का हश्र हम बिहार में देख चुके हैं। बिहार में नीतीश जी के शासन में 2006 में मंडियां खत्म कर दी गई। यदि मंडियों को तोड़ने से किसानों की तरक्की होती तो बिहार के किसान आज समृद्ध हो जाते, लेकिन बिहार के किसान सबसे गरीबी की हालत में हैं। नेताओं ने कहा कि किसान अगर आंदोलन करती है तो सरकार आंदोलनकारी किसानों पर लाठी-डंडे व अश्रु गैस के गोले दागते हैं। मौजूदा केंद्र सरकार पूरी तरह से कृषि और किसान विरोधी है। आज पूरे बिहार में वामपंथी एवं जनतांत्रिक दलों ने किसान आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका है। अगर किसानों की मांग शीघ्र नहीं मानी जाती है तो यह आंदोलन और धारदार होगा। सभा को सीपीआई नेता प्रभाकर प्रसाद सिंह, पुनीत मुखिया,रविन्द्र यादव, सीपीआईएम नेता संजय कुमार,रजनीश कुमार, भाकपा माले नेता अरूण दास एवं अभय बर्मा , स्वराज इंडिया नेता विप्लव रणधीर एवं राहुल चंद्रा, राजद नेता सुजय यादव, कांग्रेस नेता अरुण स्वर्णकार आदि नेताओ ने संबोधित किया।

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