हजारों अनाथ बच्चों की मां “सिंधु ताई” महाराष्ट्र की मदर टेरेसा

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हजारों अनाथ बच्चों की मां “सिंधु ताई” महाराष्ट्र की मदर टेरेसा

ANA/Hemlata Mahaske

मुंबई। अपने ही दुख दर्द में खुद को डुबोए रखोगे तो बहुत कोशिश के बाद भी तुम्हारी जिंदगी नहीं बचेगी और अगर दूसरों के दुख दर्द को खुद का समझ कर परायों को अपनाओगे तो न केवल उनकी जिंदगी का भला होगा बल्कि तुम्हारी जिंदगी भी संवर जाएगी। यह बात एक मुलाकात में देश की प्रख्यात समाज सेविका सिंधु ताई सपकाल ने कही। महाराष्ट्र की 70 वर्षीय सिंधु ताई हजार बच्चों की मां के नाम से विख्यात हैं। उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए अब तक अपने देश के चार राष्ट्रपतियों सहित कई मुख्यमंत्री सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा वे देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा पांच सौ से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी पुरस्कृत हो चुकी हैं। उन्हें डी वाई पाटील इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च द्वारा डॉक्ट्रेट की उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका है।सिंधु ताई अब तक सैकड़ों अनाथ बच्चे बच्चियों को गोद लेकर न सिर्फ उनकी परवरिश करती आ रही हैं बल्कि उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हर संभव कोशिश करती आ रही हैं। उनका कहना है कि केवल अपने ही दुखों को औरों के आगे परोसती रहती तो मैं कब की मर गई होती। वर्धा जिले के एक गांव में 14 नवंबर,1948 को जन्मी सिंधु ताई अब तक 1500 से अधिक अनाथ बच्चों के साथ सैकड़ों महिलाओं को भी अपना चुकी हैं। वे उन्हें पढ़ाती हैं, उनको अपने पैरों पर खड़े करती हैं फिर उनकी शादी करा कर उन्हें जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने में सभी तरह की मदद भी करती हैं। सभी बच्चे उन्हें कृतज्ञता स्वरूप “माई” कह कर बुलाते हैं और उनके नाम पर आश्रम में एक अखंड दीपक जलाए रखते हैं। उनको उनमें किसी दैवीय शक्ति का अहसास होता है। सिंधु ताई भी अनाथ बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो, इसके लिए उन्होंने शुरू में ही अपनी बेटी ममता को पुणे के दगडूशेठ हलवाई को गोद दे दी। अब पशुओं के तबेले में जन्मी उनकी यह बेटी वकील बन गई है। साथ ही वह एक अनाथालय भी चलाती है। सिंधु ताई को जिस पति ने 20 साल की उम्र में मौत के मुंह में धकेल दिया था। उनको उन्होंने माफ करते हुए वापस बुला लिया। पति के रूप में नहीं बल्कि उनको अपना सबसे सबसे बड़ा बेटा मानते हुए उनकी पूरी देखभाल की। उन्होंने केवल पति को ही नहीं,बल्कि जिस जिस ने विपत्ति में उनके साथ दुर्व्यवहार किया, उनको भी खुले मन से माफ किया और उनको हृदय से अपनाया। सिंधु ताई ने अपना जीवन अनाथ बच्चों और बेसहारा महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया है। आज सैकड़ों अनाथ बच्चों वाले उनके परिवार में 250 दामाद हैं और 50 बहू हैं। एक हजार से ज्यादा पोते और पोतियां हैं। 350 गाएं भी हैं। आज उनके गोद लिए अनाथ बच्चों में कई डॉक्टर हैं, इंजीनियर हैं, वकील हैं, अध्यापक हैं और कई बच्चे तो बड़े होकर खुद के अनाथालय का संचालन करते हैं। सिंधु ताई ने महिला होते हुए भी दुख के सामने कभी हार नहीं मानी और ना ही गलत रास्ते पर गई। बल्कि अपने दुख को पूरी तरह से भुला दिया और दूसरों के खासकर अनाथ बच्चों के दुख दर्द को दूर करने में ही अपनी पूरी जिंदगी झोंक दी। उन्होंने बताया कि उन्हें जब पति ने घर से निकाल दिया तो उसकी और उसकी 10 दिन की नवजात बेटी के लिए कहीं कोई बसेरा नहीं था। खाने पीने के लाले पड़ गए तो आश्रय के लिए वे वापस मायके गईं लेकिन उनकी मां को उनकी इतनी दयनीय हालत पर थोड़ी सी भी दया नहीं अाई। मां ने उनको पूरी निर्ममता से भगा दिया। तब मजबूरन उन्हें रेल पर, गांव में और मंदिर के सामने भजन गाकर भीख मांगने के लिए विवश होना पड़ा। वह अक्सर भीख में मिलने वाली खाने-पीने की सामग्री और पैसे केवल अपने लिए नहीं रखती बल्कि अन्य भिखारियों के बीच बांट देती थीं। ताई कहती हैं कि इससे मेरा कोई नुक्सान नहीं होता बल्कि वे मुझे अपनापन देते। मेरा संरक्षण करते। वास्तव में सिंधु ताई की प्रवृत्ति केवल भीख मांग कर अपना गुजारा करने की नहीं थी। बहुत मज़बूरी की हालत में भी उनका यह मकसद नहीं रहा। उन्हें इतने असह्य दुख दर्द का सामना इसलिए करने को मजबूर होना पड़ा कि उन्होंने अपने ससुराल में महिलाओं के शोषण के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया था। जो गांव के जमींदारों और वन विभाग केअधिकारियों को नागवार लगने लगी। सिंधु ताई को महिलाओं के हक में आवाज बुलंद करने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी। वे केवल सामान्य महिला की तरह जीवन जीने की कोशिश करती तो शायद उनको इतने अधिक कष्टों का कभी सामना नहीं करना पड़ता। वह हर हाल में पढ़ना चाहती थीं पर नियति ने उनकी पढ़ने लिखने की इच्छा को नेस्तनाबूद कर दिया। सिंधु ताई बहुत सारी चुनौतियों का सामना करते हुए भी पढ़ना चाहती थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जब वह 10 साल की हुई तो उनकी शादी उनसे 10 साल बड़े व्यक्ति श्रीहरि सपकाल से कर दी गई। अपने पति के घर में बसने के बाद वह केवल एक गृहणी बन कर नहीं रही। जब वह 20 साल की हुई तो वह पहली बार गर्भवती हुई। इसी दौरान सिंधु ताई ने जमींदारों और वन विभाग के अधिकारियों द्वारा ग्रामीण महिलाओं के शोषण के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि गुस्साए जमींदार ने सिंधु ताई के खिलाफ यह अफवाह उड़ा दिया कि उसके गर्भ में पल रहा बच्चा उसके पति का नहीं है। फिर क्या था! सिंधु ताई के सामने दुख का पहाड़ खड़ा हो गया। पूरे गांव में उसकी बदनामी होने लगी तो उसे उसकी जाति के लोगों ने उसका सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया। ऐसे में उनके पति ने उन्हें कोई संरक्षण देने के बजाय उसकी इतनी पिटाई की कि वह बेहोश हो गई। पति ने उन्हें बेहोशी की हालत में ही पशुओं के तबेले में धकेल दिया। तबेले में बेहोशी की हालत में ही उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। जब सिंधु ताई की नवजात बेटी केवल 10 दिन की थी, तब उन्हें और उनकी बेटी के सामने भुखमरी की नौबत आ गई। वे बताती हैं कि वे गांव में भी भीख मांगती लेकिन वह कभी एक जगह पर 1 दिन से ज्यादा नहीं रुकती क्योंकि उन्हें मर्दों से डर लगता रहता। क्योंकि वे उस समय 20 साल की थीं और उन्हें अपने आबरू के लूटने की आशंका हमेशा बनी रहती थीं। इसी तरह वह यात्रा करती हुई महाराष्ट्र के चिकलधारा पहुंच गई, जहां एक बाघ संरक्षण योजना के लिए आदिवासी गांवों को खाली करा देने से ग्रामीण काफी परेशान थे। सिंधु ताई ने यहां आदिवासी लोगों के हक में आवाज उठाना शुरू किया तो उनकी कोशिश रंग लाई और सरकार ने गांव से खदेड़े गए आदिवासियों के पुनर्वास की मंजूरी दी। आदिवासियों के बीच सिंधु ताई का आदर बढ़ा और वहां उनके रहने के लिए एक कुटिया बना दी गई। इस समय तक उनके साथ अनेक अनाथ बच्चे जुड़ चुके थे। वे उन बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था करने लगीं। कई सालों तक कठोर मेहनत करके उन्होंने चिकल दरा में ही अनाथ बच्चों के लिए पहला आश्रम बनाया। इसके बाद उन्होंने पुणे सहित कई जगहों में भी आश्रमों का निर्माण किया। वे कहती हैं कि उन्होंने कुछ नहीं किया, जो भी हुआ, वह ईश्वर ने करवाया। ईश्वर ने मुझे संकट के समय मुझे जिंदगी बख़्शी। मुझे शुरू में बहुत अपमान झेलना पड़ा लेकिन मुझे हर जगह अब सम्मान ही सम्मान मिलता है।

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