लोक अदालत की स्थापना लोक उपयोगिता सेवा से अभिप्रेरित – रंजुला भारती, सचिव

पोक्सो एक्ट की पीड़िता को सरकारी अधिवक्ता के अतिरिक्त विधिक सहायता देने का है प्रावधान

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लोक अदालत की स्थापना लोक उपयोगिता सेवा से अभिप्रेरित – रंजुला भारती, सचिव

पोक्सो एक्ट की पीड़िता को सरकारी अधिवक्ता के अतिरिक्त विधिक सहायता देने का है प्रावधान

ANA/Arvind Verma

खगड़िया (बिहार)। व्यवहार न्यायालय कैंपस में बने ज़िला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव रंजुला भारती ने एक विशेष भेंट में इस मीडिया से कहा किसी दीवानी, फौजदारी, राजस्व या अन्य न्यायालय में लंबित मामले का पक्षकार हो या किसी न्यायालय में वाद दायर करना चाहता हो ऐसे प्रत्येक व्यक्ति मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने का हकदार होगा। आगे उन्होंने कहा मानव दुर्व्यवहार से पीड़ित हो या भिखारी हो या महिला जो 18 वर्षा से कम आयु की बच्ची या 16 वर्ष से कम आयु का बच्चा हो, वह व्यक्ति जो प्राकृतिक आपदा संजातीय हिंसा, जातीय क्रूरता या औद्योगिक दुर्घटना से पीड़ित हो या औद्योगिक कामगार हो, वह व्यक्ति किसी भी तरह की अभिरक्षा में या मनोचिकित्सीय परिचर्चा गृह में हो ऐसे लोगों को भी निःशुल्क विधिक सहायता दिए जाने की व्यवस्था इस प्राधिकार में है। इतना ही नहीं पोक्सो एक्ट की पीड़िता को सरकारी अधिवक्ता के अतिरिक्त विधिक सहायता उपलब्ध करने का भी प्रावधान है। विधिक सहायता एवं लोक अदालत के माध्यम से लोक अदालतों का आयोजन करके सुलह समझौते के माध्यम से विवादों का निपटारा करना, निवारक और अनुकूल विधिक सहायता कार्यक्रमों का संचालन करना, विधिक सेवा उपलब्ध कराने हेतु अत्यधिक प्रभावी एवं कम खर्चीली योजनाएं तैयार करके उन्हें कार्यान्वित करना, ग्रामीण क्षेत्रों, गंदी बस्तियों या श्रमिक कॉलोनी में समाज के कमजोर वर्गों को उनके विधिक अधिकारों की जानकारी देने हेतु विधिक शिविरों का आयोजन करना तथा पारिवारिक विवादों को सुलह समझौते के आधार पर निपटाना ऐसे मुख्य कार्य प्राधिकार द्वारा किए जाते हैं। सचिव रंजुला भारती ने यह पूछे जाने पर कि विधिक सहायता प्राप्ति के लिए पात्रता क्या होनी चाहिए ? इस पर उन्होंने कहा एचआईवी से संक्रमित या किसी प्रकार के कैंसर से ग्रस्त व्यक्ति, असंगठित क्षेत्र का एक कर्मकार, तेजाब हमले का पीड़ित व्यक्ति या बेगार में अवैध व्यापार से आहत हो जैसा संविधान के अनुच्छेद 23 में निर्दिष्ट है या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का एक सदस्य हो इन्हें कानूनी सेवा निःशुल्क प्रदान किए जाते हैं। आगे उन्होंने कहा लोक अदालत जिला मुख्यालय में जहां जिला जज बैठते हैं कार्यरत है इस अदालत में उन सभी दीवानी एवं फौजदारी मुकदमें( जो सुलह करने योग्य हो) का निपटारा होता है जो किसी न्यायालय में लंबित हो या अभी किसी न्यायालय में ले जाना हो। कोई एक पक्ष या दोनों पक्ष के आवेदन पर मुकदमा लोक अदालत में भेजा जा सकता है। लोक अदालत की स्थापना लोक उपयोगिता सेवा से अभिप्रेरित है और ऐसी सेवा को शामिल किया जाता है जिसे केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार जो भी स्थिति हो लोकहित में अधिसूचना द्वारा इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए लोक उपयोगिता सेवा के रूप में घोषित कर सकें। आगे उन्होंने कहा लोक अदालत द्वारा मुकदमों के निपटारा में वकील पर खर्च नहीं होता, कोर्ट फीस नहीं लगता, पुराने मुकदमों की कोर्ट फीस वापस हो जाती है। किसी पक्ष को सजा नहीं होती। मामले को बातचीत द्वारा सलह से हल कर लिया जाता है। मुआवजा और हर्जाना भी तुरंत मिल जाता है। आगे उन्होंने कहा इस प्राधिकार में सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है और सबसे ज्यादा खासियत यह है कि फैसला के विरुद्ध कहीं अपील नहीं होता है।

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