कलिकाल में ईश्वर प्राप्ति का साधन संकीर्तन -देवराहाशिव नाथ दास

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ANA/S.K.Singh

आरा। त्रिकालदर्शी ,परमसिद्ध,विदेह श्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज का मधेपुरा जिला से वापस आरा आगमन पर आरा के मुफ्फसिल थानांतर्गत रामापुर-सनदिया में श्रद्धालुओं ने हाथी,घोडा, गाड़ी, गाजा,बाजा के साथ भव्य स्वागत किया गया।श्रद्धालुओं ने संतश्री की पूजा अर्चना की।पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज ने कहा कि
।।रहा कौन नर सदा जगत में।
रंक भूप अभिमानी।
।।ज्ञानी मूढ़ साधु-असाधु की ।
।।केवल रही कहानी।
इस संसार में राजा से गरीब तक नहीं रहेगा।केवल उसके द्वारा किया गया कर्म ही रहेगा।किसी भी व्यक्ति के द्वारा किए गए अच्छे और बुरे कर्म को ही लोग याद रखते हैं।राम,कृष्ण, ईसा, मोहम्मद आदि के द्वारा किए गए कर्म को ही आज भी लोग याद रखें है ।संतश्री ने आगे कहा कि जो घनघोर संसार में है उसका द्वारा किए गए कर्मों को लोग याद नहीं रखेंगे।जिसका कर्म मरने के बाद भी याद रखा जाएगा ,वह अमर है ।बाकी सब सियार और चिलर की तरह है।वह धनोपार्जन करते-करते मर जाएगा और जरा-मरण के बंधन में फंसा रह जाएगा। इस जरा-मरण के बंधन से मुक्ति का एक ही साधन है हरिकीर्तन। संतश्री ने आगे कहा कि जो फल इस कलिकाल में तीरथ करने से, जप करने से, योग करने से, कथा पढ़ने से नहीं प्राप्त होती है,वहीं फल कलियुग में हरिनाम संकीर्तन करने से प्राप्त हो जाती है।श्रीमद्भागवत में भी लिखा है कि:-
यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना।
तत्फलं लभते सम्यक्कलौ केशवकीर्तनात्।।
वहीं इस दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु भक्त मौजूद थे।

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