आपातकाल की 47 वीं वर्ष गांठ पर जेपी सेनानियों को सम्मान समारोह में किया गया सम्मानित

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]
Listen to this article

आपातकाल की 47 वीं वर्ष गांठ पर जेपी सेनानियों को सम्मान समारोह में किया गया सम्मानित

ANA/S.K.Verma

खगड़िया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय जमालपुर गोगरी में आपातकाल की 47 वीं वर्षगांठ पर जेपी सेनानियों के सम्मान में सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जेपी आंदोलन के सेनानी मनोहर लाल शर्मा ,अनिल कुमार दीपक, पशुपति खेतान, अविनाश सिन्हा, राजाराम प्रसाद, बैजनाथ केसरी, प्रोफ़ेसर नरेंद्र यादव, जयप्रकाश मिश्र, जयप्रकाश यादव, शिवनंदन शर्मा सहित को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुनील कुमार सिंह भाजपा जिला अध्यक्ष खगड़िया कार्यक्रम संचालक विनोद कुमार झा पूर्व जिला महामंत्री भाजपा कार्यक्रम प्रभारी अरुण कुमार शर्मा लड्डू शर्मा भाजपा जिला उपाध्यक्ष खगड़िया कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भारतीय जनता पार्टी के नगर संयोजक राजेश कुमार पंडित उर्फ टाइगर, कार्यक्रम में शामिल राजेंद्र मंडल, चंदन कुमार, शंभू पासवान, सुनील मिश्रा, अरुण पंडित, फूलचंद पटेल, मनीष कुमार राय, मनोज कुमार, कौशल कुमार सिन्हा, रेखा देवी, नितिन केजरीवाल, राजीव जायसवाल, विपिन निषाद, अमर सिंह, नीतीश सिंह, बिजय काॅशरी, रतन निषाद वार्ड पार्षद, निरंजन काॅशरी, फूलचंद्र पटेल, रंजीत कुमार रंजन, सुजीत कुमार उर्फ पप्पू जेपी आंदोलन के सेनानी मनोहर लाल शर्मा एवं प्रोफेसर नरेंद्र यादव ने बताया कि 1974 आज ही का वो दिन जब बिहार से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन की नींव पड़ गई थी ये आंदोलन पूरे देश में ऐसा फैल गया कि देखते ही देखते राजनीति का चेहरा ही पूरी तरह बदल गया। ये आंदोलन करीब एक साल चला। देश ने इस आंदोलन के साथ आपातकाल का वो बुरा दौर भी देखा। इस दिन आख‍िर कुछ तो ऐसा हुआ था जिसने इतने बड़े आंदोलन को जन्म दिया। 18 मार्च, 1974 को पटना में छात्रों और युवकों द्वारा आंदोलन शुरू किया गया था। इसे बाद में जेपी का नेतृत्व मिला था। अगर उस दिन की बात करें तो 18 मार्च के दिन विधान मंडल के सत्र की शुरुआत होने वाली थी।राज्यपाल दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे। वहीं पटना के छात्र आंदोलनकारियों की योजना थी कि वे राज्यपाल को विधान मंडल भवन में जानें रोकेंगे। वो उनका घेराव करेंगे, लेकिन इस योजना का पता लगने के कारण सत्ताधारी विधायक सुबह छह बजे ही विधान मंडल भवन में आ गए। वहीं विपक्षी विधायकों ने राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार का निर्णय कर लिया इसलिए वे वहां गए ही नहीं। उधर प्रशासन राज्यपाल आर.डी. भंडारे को किसी भी कीमत पर विधान मंडल भवन पहुंचाने की कोश‍िश कर रहे थे। वहीं छात्रों ने राज्यपाल की गाड़ी को रास्ते में रोक लिया। पुलिस प्रशासन ने उन्हें रोकने की कोश‍िश की तो पुलिस ने छात्रों-युवकों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां चलाईं। तब छात्रों और युवकों का नेतृत्व करने वालों में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव , सुशील कुमार मोदी सहित कई लोग जुटे थे। इसमें कई लोगों को चोटें आईं। वहीं, पुलिस के लाठी चार्ज से लोगों में गुस्सा फैल गया। बेकाबू भीड़ को काबू करना मुश्कि‍ल हो गया था. आंसू गैस के गोले चलाए गए जिससे हर तरफ धुंए का माहौल हो गया। इसके बाद अनियत्र‍ित भीड़ और अराजक तत्व आंदोलन में घुस गए, छात्र नेता कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे। हर तरफ लूटपाट और आगजनी होने लगी। इस घटना में कई छात्र मारे गए और जेपी को आंदोलन की कमान संभालने की मांग की गई। हालांकि जेपी ने आंदोलन की कमान संभालने से पहले कहा कि इस आंदोलन में कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। उसके बाद लोगों ने उनकी सभी मांग ली और राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए छात्रों ने भी इस्तीफा देकर जेपी के साथ जाने का फैसला किया। इसमें कांग्रेस के भी कई छात्र शामिल थे और सभी छात्र बिहार छात्र संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलन में कूद गए। इसके बाद जेपी ने अपने हाथ में आंदोलन की कमान ले ली और बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर से इस्तीफे की मांग की। इंदिरा गांधी के शासन के दौरान देश महंगाई समेत मुद्दों को लेकर जूझ रहा था और लोगों के मन में इंदिरा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार को लेकर गुस्सा था। उस वक्त जयप्रकाश नारायण ने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा और देश के बिगड़ते हालात के बारे में बताया. उसके बाद देश के अन्य सांसदों को भी पत्र लिखा और कई इंदिरा गांधी के कई फैसलों को लोकतांत्रिक खतरा बताया। जयप्रकाश नारायण के इस पत्र से राजनीतिक जगत में हंगामा खड़ा हो गया था, क्योंकि पहली बार किसी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ सीधे आवाज उठाई थी। साथ ही उन्होंने सांसदों को लिए अपने पत्र में लोकपाल बनाने और लोकायुक्त को नियुक्त करने की मांग की थी। साथ ही नारायण नेभष्ट्राचार के खिलाफ बनाई गई कमेटी की आवाज दबाने का आरोप भी इंदिरा गांधी पर लगाया था। वहीं, इंदिरा गांधी ने राज्यों की कांग्रेस सरकारों से चंदा लेने की मांग की इस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चीमन भाई से भी 10 लाख रुपये की मांग की थी और कोष बढ़ाने के लिए कई चीजों के दाम बढ़ा दिए गए। जिसके बाद प्रदेश में आंदोलन हुए और पुलिस की बर्बरता से कई आंदोलनकारी मारे गए। इस दौरान 24 जनवरी 1974 मुख्यमंत्री के इस्तीफे की तारीख तय कर दी गई. लेकिन चीमन भाई के रवैये से आंदोलन और भड़क गया। उसके बाद जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का समर्थन किया, जिसके बाद उन्हें गुजरात बुलाया गया। बता दें, 5 जून 1974 को जेपी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था।जयप्रकाश नारायण के गुजरात जाने से पहले उन्होंने राज्यपाल के जरिए अपने हाथ में सत्ता रखने की कोशिश की और 9 फरवरी 1974 को जयप्रकाश नारायण के गुजरात आने से दो दिन पहले ही चिमनभाई से इस्तीफा दिलवा दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। उसके बाद मोरारजी देसाई ने नारायण के साथ दोबारा चुनाव करवाने की मांग की। साथ ही यह आंदोलन बिहार जैसे अन्य राज्यों में भी फैलने लगा। उसके बाद रेलवे के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए, जिससे इंदिरा गांधी के सामने दिक्कत खड़ी होने लगी कि आखिर पहले किससे निपटा जाए? उस दौरान जेपी ने की उनकी भष्ट्राचार-कालाबाजारी आदि के खिलाफ लड़ाई जारी है और उन्होंने आंदोलन को जारी रखने की बात कही। उसके बाद इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण के आधार पर कहा कि कुछ लोग ग्राम विकास में अपनी रुचि खोकर सक्रिय राजनीति में उतरने की कोशिश कर रहे हैं। उसके बाद इससे कांग्रेसियों समेत कई लोग इसका विरोध करने लगे। उसके बाद इंदिरा के जयप्रकाश विरोधी बयानों से आंदोलन बढ़ता गया और जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को तीखा करने का काम किया। उसके बाद जयप्रकाश नारायण ने सरकार को हटाने को लेकर आंदोलन तेज कर दिया।इस आंदोलन ने हिला दी सत्ता 08 अप्रैल 1974 को जयप्रकाश नारायण ने विरोध के लिए जुलूस निकाला, जिसमें सत्ता के खिलाफ आक्रोशित जनता ने हिस्सा लिया। इसमें हजारों ही नहीं लाखों लोगों ने भाग लिया और खुद जयप्रकाश नारायण ने इसकी अगुवाई की थी। जयप्रकाश नारायण के इस आंदोलन से इंदिरा गांधी के नीचे से सत्ता की जमीन खिसकने लगी और बाद में इंदिरा गांधी को विरोध का इतना सामना करना पड़ा कि उनके हाथ में सत्ता ज्यादा वक्त नहीं बची रही।जयप्रकाश नारायण ने आजादी के बाद ही नहीं, उससे पहले भी गांधी के साथ भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों को सफल बनाया था।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

विज्ञापन बॉक्स (विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें)

The specified carousel id does not exist.


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे
Donate Now
               
हमारे  नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट , और सभी खबरें डाउनलोड करें
डाउनलोड करें

जवाब जरूर दे 

How Is My Site?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles

Back to top button
Close
Website Design By Bootalpha.com +91 84482 65129